मेरी अभिव्यक्तियाँ
शब्दों की दुनियाँ में मेरा मन और उसका जीवन
कीड़े
धूल
धूलो का एक शैलाब आया,
बहुत ही बेहिसाब आया|
बन्द करके मेरी आँखे,
मुझमें अंधेरा फैलाया|
धूल के उड़ जाने के बाद,
रास्ता साफ़ था,
फिर क्या,
चलना अपने आप था|
लहरों की दौड़
जब लहरें ऊपर उठकर,
अपने सर्वोत्तम बिन्दु पर हो,
तब वो सबसे बलशाली नहीं,
सबसे बलशून्य होती हैं|
उनका सारा बल तो,
कहीं और छुपा होता हैं,
कहीं और जवाँ होता हैं,
उनके प्रारंभ में,
और उससे भी पहले,
और उठने के कुछ देर तक|
उसके बाद वे बलहीन हो जाती हैं,
उसके बाद वो गिर जाती हैं,
फिर उठने के लिए,
बस उन्हे साथ चाहिए होता हैं,
एक तीव्र पवन का,
और ऊपर उठने के मन का|
सिक्कों के चिन्ह
वें नहीं जानते,
सिक्कों और नोटों के ऊपर
बने चिन्हों का
क्या महत्व होता हैं,
वे सभी
किसलिए बने होते हैं|
पर वो इतना जरूर जानते हैं|
इससे उनका जीवन चलता हैं,
इससे वें खाना और कपड़े पाते हैं,
इससे वें जरूरत की चीजें लाते हैं,
इससे वें खुशियां पाते हैं,
इससे वें जीवन बनाते हैं|
मैं और जिंदगी
किसी अंधेरी दरख़्त में,
जहां से निकलने का
न कोई रास्ता मिले|
खो जाता है मन कभी
कुछ बेरहम दर्दो में,
जो बस जीवन भर
दिल को घायल करते है|
लग जाता है मन कभी
कुछ आसान से सवालों के,
जवाब ढूंढने में, पर
वो कभी मिलते ही नहीं|
राह पर राह बना रहे हैं हम
पर लक्ष्य ओझल हो रहे हैं,
लगे हैं जिंदगी को संवारने
पर पल पल सब कुछ खो रहे हैं|
ये जिंदगी क्या कहूं इसे मैं
निस्सार कहूं या कहूं बेदर्द,
कह भी दू तो क्या हो जाएगा
जिंदगी जो है रहेगी तो वही ही|
बदलू इसे मैं या खुद को
खुद बदला तो सब छूट गया,
इसे बदला तो यह टूट गया
चाहें मैं रहूं या मेरी जिंदग|
तड़प उठती रही जिगर में
आग जलती रही सफर में,
बस कुछ बाकी था तो वो था
मुझे आग का खिलाड़ी बनाना|
जीवन की खोज में
फिर रहे है, टकरा रहे हैं
जीवन की गलियों में
हम दुनियां नाप रहे है
दुनियां को भांप रहे हैं
हम हाफतें लोगो में
बिफरते भोगों में
मुस्कुराते ओठों में
जीवन को ढूंढ रहे हैं
हम कराह में
बची हुई राह में
दबी सी आह में
बुद्धीमानों की निगाह में
जीवन को ढूंढ रहे हैं
जीवन को ढूंढते - ढूंढते
अनंत जीवन गुजरे
कई युग बीते
इसी तरह शायद
बीत जायेंगे हजारों साल
जीवन के खोज में
जीवन खपे जा रहे हैं
नपी जा रही है सांसे
फिर भी अधूरा रहा जाता है
एक प्रश्न
आखिर जीवन हैं क्या
पूरा होने कि उम्मीद में
फिर से खपते है
असंख्य जीवन
ये सिलसिला चलता रहेगा
कब तक
जब तक कि हम अपने
अस्तित्व को न खोज ले।
गर्तावास
सूखे चेहरे
कुरूपता के अंश नहीं
नंगेपन के दंश नहीं|
ये मेहनती हाथ
कइयों के साथ
थकी आँख
झुलसी पांख
कंगाली के हाथ नहीं
बदहाली के पास नहीं|
ये करते हैं आजीवन परिश्रम
भरते हैं आसुओं से भ्रम
जो मिलता हैं खुश रहते हैं
न मिले तो बस आह भरते हैं|
फिर लगते हैं पाने को
जिंदगी नयी बनाने को
बस कुछ ही सफल होते हैं
बाकी सब गर्त में रोते हैं|
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