My Quotes


1. जब प्रकृति एक बड़े परिवर्तन की ओर रुख करती है तो एक नए युग का आरंभ होता है जो कि छोटे-छोटे परिवर्तनों का एकात्मक रुप है।

2. लेखन व्यवहारिक अनुभवों का वाह्यरूप है।

3. साहित्य आत्मविकास का प्रमुख साधन हैं।

4. साहित्य आत्मसंघर्स का प्रतिरूप है।

5. जिस वस्तु की जितनी आवश्यकता हो, अगर उससे कम मिलती है तो लोग उसकी इज्जत करते हैं। अगर उसे ज्यादा मिल जाए तो उसी समय से वह उसके प्रति बेपरवाह हो जाते है।

6. त्याग ही मनुष्य को महान बनाता है और त्याग ही मनुष्य को दयावान।

7. जिन कार्यों को करने पर कोई प्रत्यक्ष परिणाम ना निकल रहा हो उन कार्यों को करने में समय गवाना नहीं कहा जा सकता है। समय गंवाना तब कहा जाता है,जब उस कार्य के द्वारा आपने कुछ भी ना सीखा हो, या तो बहुत ही कम(न के बराबर) सीख हो।

8. दूसरे का अनुभव एक सपने जैसा लगता है और खुद का अनुभव महाभारत के समान।

9. जो लोग दूसरों की खुशी के लिए अपनी खुशी त्यागकर दुःख का वरण कर लेते है लोग उसे ही सीधे व्यक्ति कहे जाते है।

10. किसी व्याहारिक विषय वस्तु को आत्मचिंतन की अग्नि में पका कर तैयार किया गया तथ्य दर्शन कहलाता है।

11. हम किसी संरचना या किसी व्यक्ति या शक्ति के द्वारा संचालित तब होते हैं जब हम अपना आत्मिश्वास खो चुके होते है।

12. परिस्थितियों के बदलने पर मनुष्यों के विचार स्वत: ही बदल जाते हैं। जिसका असर उनके फैसलों पर पड़ता है।

13. किसी की वास्तविकता, जो तुम्हे लगती हैं। उसी से तुरंत या बाद में कह दो यही निंदा से समाधान पाने का तरीका हैं।

14. कोई भी व्यक्ति अतीत के सम्बन्ध में गुरु‌‌( जानने वाला, अनुभवी) तथा भविष्य के सम्बन्ध में शिष्य(सीखने वाला, अनुभवहीन) होता है।

15. पुरातत्व इतिहास की प्रयोगात्मक रुप से लिखी गई एक दूसरी किताब है।

16. पैसा जिन्दगी नहीं है। वह तो बस ज़िन्दगी की एक आवश्यकता है। बिना पैसों के भी जिन्दगी जियी जा सकती है, बस कठिनाईयां ज्यादा हो जाएंगी। पैसों से जिन्दगी में बस सरलता आ जाती है बस और कुछ नहीं।

17. एक कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति अपने जिम्मेदारी से अधिक काम करना पसंद करता है।

18. जो व्यक्ति किसी स्त्री को बुरी निगाह से देखता है। उसे इज्जत शाब्द का मूल आशय नहीं पता होता है।  

19. मनुष्य जब परिस्थितियों का दास बन जाता है। तब से उसका पतन शुरू हो जाता है।

20. विपरित परिस्थितियां एक आइना है तुम्हारी योग्यता परिक्षण के लिए।

21. सुविधाओं के अभाव में समय की बरबादी होती है।

22. जिस दिन से तुम किसी को नीचा दिखाने का प्रयास करने लगे समझ लेना कि तुम्हारे मन में अभिमान ने जगह बनाना शुरू कर दिया है।

23. सिर्फ जानने से कुछ नहीं होता है, उसको व्यवहार में लाने पर ही सफलता (पूर्ण ज्ञान में तब्दील हो पाता है) मिलती है।

24. मनुष्य अपना समस्त जीवन अतीत को सोचने, वर्तमान को समझने और भविष्य की कल्पना में व्यतीत करता है।

25. क्रोध क्षणिक या अल्पसमयीक वह घटना है जिसमें मनुष्य अज्ञानता के वश में हो कर अपना सारा फैसला लेता है।

26. साहित्य मनुष्य को समस्त गुणों से युक्त, एक पूर्ण मनुष्य बनाने का मन्दिर है।

27. जातिवाद व धर्मवाद मानव विकास के रास्ते में एक पर्वत है।

28. अल्पानुभवी कोई सही बात कहे पर लोग उसे एक अनुभवी गलत बोलने वाले व्यक्ति के सामने गलत ही समझते हैं|

29. कहीं बहुत सुविधा हो पर एक दूसरे के मन में दुर्भावना हो तो वहां रहना जेल में रहने के समान होता है|

30. मनुष्य सुख की अवस्था में किसी वस्तु को गंभीर दृष्टि से नहीं देखता है,और दुःख की अवस्था में वह एक एक वस्तु का बहुत ही गहराई से परिक्षण करता है।

31. इन्सान के दिमाग को पढ़ पाना बहुत ही मुश्किल होता है, यही मनुष्यों के लिए वरदान के समान है।

32. तुम दुनिया के किसी भी कोने में रहो विचारों का संघर्ष, रोजमर्रा की आवश्यकताएं, अभिलाषाएं, भूख,नींद,डर, उम्मीद,साहस,स्वभिमान,प्रेंम, दया आदि चीजें तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ेगी। समय और स्थिति के साथ कमोबेश मात्रा में ये हर वक्त तुम्हारे साथ रहेंगी।  

33. जब व्यक्ति किसी को कोई ऐसा वचन देता है जो पूर्ण करने में बहुत ही कठिन कार्य हो या मानो असंभव हो तो उस वचन को पूरा करने का प्रयास ही उसका पूर्ण होना माना जाता है।

34. जब अनुभव रूपी तत्व मस्तिष्क में जा कर बुद्धि से विचार विमर्श या तर्क वितर्क करता है तो ज्ञान तत्त्व का उद्भभव होता है।  

35. मौके का फ़ायदा उठाना गलत नहीं है। बल्कि फायदे पर फायदा उठाना गलत है।

36. अन्धविश्वास और धर्म की कठोरता ही विज्ञान की जन्म के स्त्रोंत है।

37. यदि किसी के शौक से किसी अन्य को दुख पहुंचे और वह अपने शौक को यथास्थिति में बनाए रखता है तो उसका शौक नहीं घमंड है।

38. किसी मनुष्य के विचारों, आस्थाओं, भावनाओं के विपरित बोलने पर या तो वह दुःखी होगा या क्रोधित।

39. मनुष्य का अनुभव ही उसके द्वारा मन में सीखी गई व्यवहारिक ज्ञान है।

40. अतीत की हकीकत, वर्तमान में कहानिओं का स्वरुप धारण कर लेती है।

41. मनुष्य की गति किसी न किसी छोटे या बड़े अभाव के कारण अवरूद्ध होती है।

42. इच्छा ही किसी भी वस्तु के अभाव का प्रमुख कारण है।

43. इच्छावृध्दि से ही वस्तु-अभाव में वृद्धि होती है।

44. इच्छापूर्ति का सबसे उत्तम मार्ग संतोष है।

45. भविष्य को समझने के लिए अतीत को समझना अति आवश्यक होता है।

46. तुम अपने अन्दर की प्रतिभा को वाह्य रूप तभी दे सकते हो, जब तुम स्वयं से बातें (आत्मचिंतन) करना सीख जाते हो।

47. विज्ञान किसी तथ्य के क्यों और कैसे शब्द की व्याख्या करता है जबकि आध्यात्म कैसे और किसलिए, किसके द्वारा की।

48. किसी चीज़ (तथ्य) के कल्पना से ही उसके निर्माण का प्रारंभ हो जाता है।

49. कल्पना प्रकृति का एक अमोघ अस्त्र है, जिसके द्वारा वह अपने भविष्य के कार्य मनुष्यों द्वारा पूर्ण करवाती है।  

50. जब आप किसी समस्या में उलझे हुए हो, आपकी समस्या से अनजान आपका कोई खास व्यक्ति, जिससे जब आप कोई उम्मीद रखते हैं और वह किसी कारण वश आपकी उम्मीद पूरी न कर पाए तो वहां शक और ईर्ष्या की भावना पनपने लगती है

51. जाति धर्म से प्रताड़ित व्यक्ति ही बस जाति धर्म के विरोधी होते है, बाकी सब समर्थक होते हैं।

52. मनुष्य का बचपना और वृद्धावस्था एक समान होता है।

53. सुविधाएं मनुष्य को आलसी बनती है और सुविधाए मनुष्य को आगे बढ़ाती है। परिणाम प्रयोग के तरीके पर निर्भर है।

54. माता-पिता के तपस्या का फल स्वयं उनको नहीं बल्कि उनके पुत्रों को प्राप्त होता है।

55. वर्तमान सिर्फ वर्तमान के लिए होता है, वास्तविक रूप में अतीत ही भविष्य का निर्धारक है।

56. प्यार मन का संकुचित रूप है और प्रेंम मन का विस्तृत रूप।

57. अच्छें लोगों मर जाने पर भी अपने अच्छाइयों के रूप में जीवित रहते है और बुरे लोग जीवित रहते हुए भी अपने बुराइयों द्वारा स्वयं को मृत बना लेते है।

58. बचपन में प्रकृति हमारा पालन-पोषण करती है इसलिए बचपना सुहाना होता है और उसके बाद प्रकृति हमारा उपयोग करती है इसलिए बाद का जीवन हमें नीरस प्रतीत होने लगता है।

59. जिस व्यक्ति को स्वयं पर विश्वास नहीं होता है वही व्यक्ति दूसरों पर विश्वास नहीं करता है।

60. मानवीय जीवन में किसी एक वस्तु का स्थाई महत्व नहीं होता है।

61. राजतंत्र हो या जनतंत्र सब प्रकृति स्वशासन के ही अलग रूप है।

62. जिनके पास आवश्यकता से अधिक है वो परोपकार करें और जिनके पास कमी है वो स्वकर्म करें। ग़रीबी व बदहाली जड़ से खत्म हो जाएगी।

63. प्रयाग की भावभूमि में साहित्य का एक मनमोहन सम्मिश्रण है, यहां कदम रखने वाले लोग साहित्य की खुशबू से ही साहित्य संसार में स्वत: ही रम जाते हैं।

64. एक सच्चीं राष्ट्रभक्ति तभी कही जा सकती है जब राष्ट्रहित के लिए मानवता को कुचला न जाये।

65. परिस्थिति वश बोला गया झूठ वर्तमान के लिए अच्छा होता है परंतु भविष्य के लिए बहुत बुरा और सच वर्तमान के लिए बुरा होता है भविष्य के लिए सुखदाई होता है।

66. आधुनिकता को अपनाकर मनुष्य अपने दैनिक समय में बचत कर सकता है और उस समय का उपयोग अन्य लक्ष्य प्राप्ति के लिए कर सकता है।

67. यदि किसी व्यक्ति का भाई कोई गलती कर दे तो उसकी पत्नी उसके भाई को खूब जली कटी सुनाती है वह व्यक्ति अपनी पत्नी को कुछ नहीं बोलता है और यदि पत्नी का भाई कोई गलती कर दें यदि पति उसे कुछ बोलना चाहे तो उससे पहले ही उसकी पत्नी कहती है कि खबरदार अगर मेरे भाई को कुछ बोला तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा। काश यही विचार पत्नी के उसके भाई को व्यंग वचन बोलते समय उसका अपनी पत्नी के लिए होता।

68. मनुष्य एक स्वार्थी प्राणी नहीं होता है वह परिवेश के अनुकूलित पुरानी है जहां का जैसा प्रवेश होता है वह मनुष्य वैसा ही स्वरूप धारण कर लेता है।

69. मनुष्य अपनी औकात पर आने पर परिणामों की चिंता नहीं करता है।

70. मातृभाषा का लगाव उस जन्मभूमि के समान है जैसे मनुष्य कहीं भी चला जाए वह अपनी जन्मभूमि को नहीं भूलते, चाहे मध्य में गुजरे हुए स्थलों को आप भूल जाए।

71. किसी व्यक्ति द्वारा की गई सहायता से प्रेरित होकर यदि हुआ व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की सहायता करने लगे तब समझ लेना कि उस व्यक्ति ने अपने पूरे मन से अपने सच्चे ह्रदय से और दिल से उस व्यक्ति की सहायता की थी।

72. अविश्वास मनुष्य को जितना ही बिगड़ता है। विश्वास उसके विपरीत मनुष्य को उतना ही बनाता है।

73. त्याग संतोष का दूसरा रूप है।

74. शांति का दूसरा रूप मन की स्थिरता है।

75. मन की चंचलता से उत्पन्न आकांक्षाओं के पूर्ण ना होने पर हृदय में अशांति का आविर्भाव होता है।

76. त्याग से दुनियां की सबसे बड़ी खुशी प्राप्त होती है।

77. जिस प्रकार छोटी-छोटी गलतियों से मनुष्य में बड़ी-बड़ी खामियां उत्पन्न होने लगती है। उसी प्रकार छोटे-छोटे आवश्यकताओं के पूर्ण न होने पर मनुष्य के बड़े-बड़े सपने चूर्ण हो जाते हैं।

78. बड़े आवश्यकताओं के पूर्ण न होने पर कोई मनुष्य अन्य रास्ते अपना कर अपने सपने को पूर्ण कर लेता है। परंतु छोटे-छोटे आवश्यकताओं के पूर्ण न होने पर, वह दूसरा रास्ता न अपना पाने को मजबूर होता है और साथ ही साथ उसके सपने भी चूर्ण हो जाते हैं।

79. बुद्धि उम्र और लंबाई देखकर नहीं आती बल्कि ग्रहण करने की क्षमता रखने वालें के मस्तिष्क और हृदय में आती है।

80. एक पूर्ण निपुण व्यक्ति की पहचान होती है कि वह बल और बुद्धि दोनों को अपना घनिष्ठ मित्र सदा के लिए बना कर रखता है।

81. सिर्फ शिक्षित व्यक्ति ही देश प्रेमी नहीं होता है। देश प्रेमी बनने के लिए देश के प्रति त्याग, समर्पण की भावना होना आवश्यक है।

82. कभी कभी हमें जिंदगी को भविष्य में अनुकूल बनाने के लिए वर्तमान के परिस्थितियों के प्रतिकूल निर्णय लेना पड़ता है।

83. वर्तमान में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थिति तालाब के स्थिर जल के समान है। इसमें कोई हलचल दिखाई नहीं दे रहा है। इस तालाब में लहरों की सौन्दर्यता लाने के लिए, इसमें पहले कंकड़ फिर पत्थरों से प्रहार करना पड़ेगा, जाहिर सी बात है कि प्रहार से उत्पन्न छींटे मुझ पर पड़े और मैं भीग( बहिष्कृत, अपदस्थ) सकता हूं। पर इस बात की चिंता किए बगैर इस विश्वविद्यालय रूपी तालाब को लहरों से सुशोभित करना होगा।
                                                                        
84. ज्यों ही सूर्य की सुनहली रोशनी में पुष्प पुष्पित होने की चाह से विकसित होने का प्रयास करते हैं, कुछ ही समय बाद कोहरे सूर्य को ढक देते हैं और फूल मुरझा जाते हैं। अगले दिन कलियां इसी आशा से आत्मविकास का रुख करती है। पुनः कोहरे वाली स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यही स्थिति इलाहाबाद विश्वविद्यालय की है। विश्वविद्यालय को पुनः सुगन्धित बनाने के लिए कोहरों का समूल नाश करना होगा।

85. समाज में उत्पन्न अव्यवस्थाएं हमें अपनी योग्यता की परख करते हुए एक योग्य व्यक्ति बनने में सहायक होती है।

86. किसी व्यक्ति की योग्यता उसके विवेक पर निर्भर करती है।

87. पश्चिमी सभ्यता तकनीकी विकास को अतीत से ही सर्वाधिक महत्व देती आ रही है और सनातन सभ्यता आध्यात्म को।

88. अविश्वास ही विज्ञान की ऊर्जा का प्रमुख स्रोंत है।

89. अनेक शोधों के फल स्वरुप ही विज्ञान को एक आकार मिला है। जिसे आधुनिक मानव स्पष्ट रूप से देख वह समझ सकते हैं। आध्यात्म या प्राचीन वैदिक संस्कृति भी तो अनेक शोधों का ही परिणाम होंगी, बस हम उस संरचना तक पहुंच नहीं पा रहे हैं।

90. आधुनिक समाज में एक ऐसी क्रांति की जरूरत है। जिससे एक अच्छे भविष्य का निर्माण हो, वह है-स्त्रियों के मानसिक व सामाजिक स्वतंत्रता की क्रान्ति।

91. मनुष्य अपना संपूर्ण जीवन अपने हृदय में जीता है। आंतरिक घटनाएं जैसे- संघर्ष, खुशी, दुःख, करूणा, प्रेंम, दया, मानवता आदि वास्तविक है। वाह्य दुनियां में जो घटनाएं घटती है वह तो आंतरिक घटनाओं(संघर्षों) का मात्र एक प्रतिबिंब हैं।

92. थोड़ा डर भी जरूरी है क्योंकि डर से लोग बहुत से बुराइयों को वाह्य रूप देने का प्रयास नहीं करते हैं।

93. तुम सोचते हो कि दुनियां आज क्या है, मैं सोचता हूं कि कल दुनियां क्या होगी।

94. किसी चीज़ का होना तभी पाया जाता है। जब हम उसके बारे में सुनते, पढ़ते, देखते या सोचते है। इसके विपरित उसका बोध हो पाना मुश्किल है।

95. अपनों के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है।

96. उम्र और अनुभव का सीधा संबंध नहीं होता है।

97. ज़िन्दगी किसी प्रोफेसर की थ्योरी नहीं है
ज़िन्दगी सतत् है, परिवर्तनशील है,
इसे जितना ही बन्धन में बांधेंगे, 
यह उतनी ही स्वतंत्र होती जायेगी।

98. धर्म व्यवहार को व्यवस्थित करता है जबकि विज्ञान सिद्धांत का प्रतिपादक है। 

99. विज्ञान लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकता है परन्तु लोगों के जीवन को संचालित नहीं कर सकता है।

100. धर्म का अंधानुकरण ही अंधविश्वास है।

101. मात्र विज्ञान ही इस दुनियां का भविष्य है, यह कहना अनुचित है। इसके बारे में बस इतना कहा जा सकता है कि वर्तमान में विज्ञान सबसे ज्यादा प्रभावी है।

102. आप अपने विचारों से आसमां को छू लीजिए लेकिन आपने आचरण को ज़मीन पर टिके रहने दीजिए।

103. आज कल कांटे भी गुलाब से लगते हैं, जब चुभते है तब विषैले लगते हैं।

104. मन में कोई ख्वाब हो तो रास्ते आसान हो जाते हैं वरना एक किलोमीटर भी कोसों दूर लगते हैं।

105. वर्तमान जीवन में विज्ञान का अर्थ सुव्यवस्थित प्रमाण से है।
प्राचीन काल में सभी तथ्यों को धर्म प्रमाणित करता था और वर्तमान में विज्ञान।

106. जिसके प्रति हमारे मन में दुर्भावना हो, उसकी सच्ची या अच्छी बातें भी हमें कड़वी ही लगती है।

107. रिश्तो में भावनाओं का होना अति आवश्यक तो है परंतु भावनाओं के बदलने पर रिश्तों का बदल जाना कमजोर रिश्तों की ओर संकेत करता है।

108. सनातन धर्म और उनके अनुयायियों ने कभी किसी का जबरन धर्म परिवर्तन नहीं कराया, कभी धोखे से भी नहीं‌ सनातन धर्म को अनेक लोगों ने हमेशा स्वेच्छा से ही ग्रहण किया।

109. हम हमेशा क्षणिक अवस्था में जीवन यापन करते हैं तो हम प्रकृति के दीर्घकालिक प्रभावों को इतने कम समय में या क्षणिक अवस्था में कैसे समझ सकते हैं।

110. विज्ञान में मानव समाज को प्रकृति से दूर करके उसे प्रगति रूपी मीठा जहर दिया है। 

111. धर्म एक पूर्ण विकसित अवस्था है और विज्ञान विकास की खोज में प्रयासरत संस्था।

112. धर्म को उसके वास्तविक रूप में न अपनाकर हम उसके आभासी स्वरूप को महत्व दे रहे हैं, जिसके विरोध में विज्ञान अपना कद फैलाने में सफल हो रहा है।

113. किसी भी तथ्य को शब्द संरचना से एक आकार तभी मिलता है, जब उसमें वास्तविकता निहित होती है। वह दृश्य हो या अदृश्य, उसका शाब्दिक स्वरूप कल्पनात्मक भी है सकता है और प्रत्यक्षात्मक भी।

114. धर्म एक विशेष परिवेश के विचारों का समूह है। जिसमें अच्छाई को प्राथमिकता दी जाती हैं।

115. आर्य भाषा संस्कृत के बिना विश्व के इतिहास को परिभाषित करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।

116. मनुष्य के सद्गुणों या दुर्गुणों पर विचारों का दीर्घकालिक प्रभाव होता हैं।

117. हम जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं अतीत की वस्तुएं, द्रिश्य आदि सब छोटी होती जाती हैं|

118. शर्म और डर मंजिल के रास्ते की दो भयानक गुफाएं हैं, जो इन्हें पर कर गया सफलता उसके कदम चूमेगी।

119. धर्म से भी बड़ी मानवता होती है। जो इंसान इस बात को नहीं समझ सकता है, वह धर्म का पोषक नहीं शोषक हैं।

120. जब तुम्हारे एक अच्छे काम से लोगों को हजारों बार प्रेरणा मिल सकती हैं तो क्या उसका मूल्यांकन कोई भी कर सकता है।

121. हठी सिद्धांतवादी होना भी कभी कभी जीवन के लिए प्रतिकूल हो जाता है।

122. जीवन बस एक क्षण में ही हैं, बाकी सब भूत और भविष्य है।

123. बुद्धि किसी देश, काल तथा व्यक्ति की मोहताज नहीं होती है। वह ग्रहणनुरागी के प्रति स्वत: आसक्त हो जाती हैं।

124. इतिहास सिर्फ सत्तापक्ष का वितान्नत हैं जबकि साहित्य सामान्य लोगों विचारों का।

125. किसी के एक काम से उसके व्यक्तित्व का परीक्षण नहीं हो सकता है।

126. किसी चीज को बुरा मात्र कहने से वह बुरा नहीं हो जाता है। उसके लिए उचित तर्कों और प्रत्यक्ष प्रमाणों की आवश्यकता होती है।

127. साहित्य अपने परिवेश के आधीन होता है।

128. वास्तविक जीवन वो हैं आप जो अपने  मन में जीते हैं।

129. जो व्यक्ति सारथी होता है, वह जीवन के नियमों कानूनों के हिसाब से जीवन यापन करता हैं और जो मनुष्य यात्री सा व्यवहार करता है, वह जीवन के नियमों कानूनों को दरकिनार करके अपने खुशियों को ज्यादा महत्व देता है।

130. डर ऐसा न हो की वो आपके गति को रोक दे। डर ऐसा हो कि वह आपके मन के बुराइयों को रोके |

131. आज धर्म बुरे लोगों के द्वारा जकड़ा हुआ है, इसीलिए वह अपने अस्तित्व से लड़ रहा है। कल अगर यही हाल विज्ञान का हो जाए तो क्या होगा।
तब विज्ञान तो मानवता के लिए धर्म से अधिक विनाशक साबित होगा। क्योंकि विज्ञान वर्तमान में भी कम विनाशकारी नहीं है।

132. धर्म मानवता के लिए है न कि धर्म के लिए मानवता।

133. धर्म हमारे अन्दर की अच्छाइयां धर्म हैं और बुराइयां अधर्म।

134. व्यहारिक जीवन सिर्फ कठोर नियमों(सिद्धांतो) से नहीं चल सकता है। उसमें कुछ लचीलापन आवश्यक है।

135. विज्ञान की विचारधारा प्रकृति को अपने बस में करके उस पर शासन करना चाहती है जबकि धर्म की विचारधारा उसके बस में ही रहकर जीवन यापन करने का प्रयास करती है।

136. एक लेखक अपने शब्द में और एक विचारक अपने विचारों में, उनके समापन तक जीवित रहता है।

137. राजनीति एक ऐसी नदी हैं। लोग जिसे दूर से देखकर पार कर जाने के सपने देखते हैं।पर जब बीच धारा में पहुंचते हैं तो दिमाग काम करना बंद कर देता है।

138. मैंने कई ऐसे व्यक्तियों को देखा हैं जो बचपन में किताबों से दूर रहे पर किताबों के लिए उपुक्त रहे।

139. मैंने कई ऐसे व्यक्तियों को देखा हैं जो जीवन भर अनपढ़ रहे , शायद वो इसी वजह से मंदिर मस्जिद में फर्क नहीं जानते हैं। वो मंदिर में भी सिर झुकाते  हैं और मस्जिद में सजदा करते हैं।

140. हर नई पीढ़ी अपने पूर्वजों से प्राप्त नियमों व परंपराओं को अच्छे तरीके जांच परख कर प्रयोग में लाए तथा अपने से बनाए नियमों परंपराओं में भविष्य का विशेष ध्यान रखें, तभी कुरीतियों, आडंबरों, कुप्रथाओं और अंधविश्वासों को नई जमीन पर उगने का मौका नहीं मिलेगा।

141. जिस इस दुनियां से सारी बुराइयां समाप्त हो जायेगीं। शायद उस दिन से भगवान की आवश्यकता खत्म हो जायेगी।

142. जो तथ्य हमारे समझ से परे है, इसका अर्थ यह नहीं है कि उसका कभी अस्तित्व ही नहीं था या न कभी होगा।

143. अनुभवों के अनुभव को ही दर्शन कहते हैं।

144. एक इतिहासकार अपनी सोच (कल्पना) से ज्यादा प्रत्यच्छ सबूत पर विश्वास करता है।

145. हिन्दी के राष्टभाषा बनने के मार्ग में सबसे बड़े रुकावट वो लोग हैं जो हिन्दी को समझने में समर्थ हैं फिर भी व्यवहारिक प्रयोग में नहीं लाते हैं।

146. भाषा की गुलामी, परोक्षरूप हमें उस देश की  से गुलामी सिखाती हैं। 

147. दुनिया का हर एक व्यक्ति स्वयं को सही ठरता हैं, तो प्रश्न उठता है कि गलत कौन है।  तब तो हमे सही शब्द की परिभाषा बदलने की आवश्यकता है।

148. एक अध्यापक को हमेशा एक शिष्य बने रहना चाहिए। जबकि व्यवहार से उसे छात्र की तरह अव्यवस्थित नहीं रहना चाहिए।

149. सोशल मीडिया पर केवल फैक्ट मिल सकता हैं, नालेज नहीं। नालेज के लिए हमें किताबों और व्यवहार की ओर रुख करना ही पड़ेगा।

150. तुम्हारे खुद के एहसास दूसरो के लिए एक सपने समान होते हैं।

151. किसी समस्या से बंधकर उसका हल खोजोंगे तो उसका पूर्ण समाधान नहीं मिला सकता हैं। समस्या के मनोभावों से दूरी बना कर, उसका हल खोजने पर ही पूर्ण समाधान पाया जा सकता है।

152. व्यक्ति के सिद्धांत उसके चित्तवृत्तियों को एक स्थाई रूप देते हैं।

153. मनुष्य पूर्ण रूप से प्रगति तभी कर सकता है जब वह विज्ञान और धर्म को एक पति पत्नी के रूप में स्वीकार्य कर ले और एक दूसरे की भावनाओं का ध्यान रखकर दोनों साथ साथ कदम बढ़ाए।

154. लेखक समाज को सजाता भी हैं और बचाता भी।

155. धन का जीवन से उतना ही संबंध हैं, जितना कि जीवन का सांस से, जिस प्रकार सांस की भांति धन की कमी होने पर दो कदम चलना भी मुश्किल हो जाता है और सांस के अधिक होने पर जीवन के लिए जिस प्रकार संकट उत्पन्न हो जाता हैं। 156. उसी प्रकार धन के अधिक उपभोग से जीवन का संघर्ष से दूरी बन जाती हैं। क्योंकि बिना संघर्ष के जीवन का कोई महत्व नहीं होता हैं।

157. तुम्हारे विचार ही केवल सत्य हैं ऐसा समझना मात्र तुम्हारा भ्रम हैं।

158. रचनाएं एक लेखक की सम्पत्ति होती हैं।

159. कहानियां जीने की कला सिखाती हैं।

160. जीवन एक कारवां हैं गलतियां होने का और उनसे सीखने का।

161. इतिहास एक पाषाण रूप हैं और साहित्य उसको आकर्षक बनाने वाली छेनी - हथौड़ी। मानव मन उस कला का निर्माता और प्रकृति परिवर्तन उसके मोहक रंग।

162. आप जो कुछ जानते हैं शायद वह अंतिम सत्य नहीं हैं।

163. मानवीय सृजन को छोड़कर, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दृष्टिगत कलाकृतियों का समीकृत रुप, प्रकृति स्वरूप का आभासीय रूप है।

164. साहित्य सांकेतिक इतिहास है।

165. किसी व्यक्ति का जीवन दो प्रकार से विदित होता है। पहला स्पष्ट और दूसरा अस्पष्ट। स्पष्ट जीवन से वह स्वयं वाक़िफ होता है, और अस्पष्ट जीवन से सारी दुनियां।

166. श्रेष्ठता का की भावना मनुष्य को अंदर से खोखला बना देता है।

167. आपके जीवन की समस्याएं ही आपको एक नया मुकाम देंगी। बस आपको उनसे लड़ने की क्षमता विकसित करनी होगी।

168. दुनियां में जो कुछ भी हैं सब कुछ इतिहास हैं।

169. कभी कभी कुछ मनोगत भावनाओ को कुचलने (दबाने) पर ही जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है।

170. सिद्धांतो को कम समय में तथा व्यवहार को देरी के साथ सुधारने का प्रयास किया जा सकता है।

171. इधर घर में आग लगी है और उधर दावत की मांग की तैयारी हो रही हैं।

172. क्रांति मानवीय समाज का एक कदम आगे बढ़ने की ओर संकेत करता है।

173. कोई व्यक्ति अपनी नजर में तब तक गलत नहीं होता है, जब तक उसकी नजर साफ न हो जाए।

174. कोई कार्य अच्छा तब कहलाता है जब तक कार्य संपादन में एक अच्छा सामंजस्य न बने, चाहे वह कार्य पारिवारिक हो, सामाजिक हो, धार्मिक हो,आर्थिक हो या राजनीतिक हो।

175. परंपराएं अक्षु्ण नहीं है, परंपराएं सामाजिक समन्वय की आधारशिला हैं।

176. किसी व्यक्ति से हृदयगत दूरी बना कर आप उसकी बुराइयां कर सकते हैं लेकिन उसके हृदय के करीब रहते हुए नहीं। हृदय के करीब रहते हुए आप बस उसकी बुराइयों को समाप्त करने की चेष्टा करते रहेंगे।

177. जीवन में हमें जिस वस्तु की अधिकाधिक जरूरत होती है। वह हमे अक्सर नहीं मिलती है। जिस दिन उसकी आवश्यकता न्यून हो जाती है। वह वस्तु, हमें प्राप्ति के समीप होती है।

178. जिस दिन से आपने प्रकृति में उपस्थित सभी चीजों को समीकृत रूप में देखने का प्रयास करेंगे। उस दिन से आप चीजों को एक नये नज़रिए से समझ पाएंगे।

179. शिक्षा के द्वारा किसी जंगल को सुन्दर उपवन बनाया जा सकता है।

180. हम अतीत का अध्ययन करते हैं और भविष्य पर विचार।

181. समाज में मनुष्य एक प्रकार से क्षणिक जीवन व्यतीत करता है इसीलिए वह अपने जीवन पर पड़ने वाले दीर्घकालिक प्रभावों को वह समन्यवित नहीं कर पाता है।

182. धर्म मानवीय सभ्यता के प्रगति का पहला चरण हैं और विज्ञान दूसरा।

183. भारतीय साहित्य में जितने भी अलौकिक नायक हुए है,
वे सभी लौकिकता की प्रगति में शून्यता को प्राप्त हो रहे हैं।
 
184. शून्य अदृश्य होते हुए भी सार्वभौमिक व सार्वकालिक हैं

185. साहित्य जनचित्तवृतियों के परिवर्तन का इतिहास हैं।

186. एक व्यक्ति अपने अतीत को खुद में समेटे रहता है और वर्तमान को समेटने का प्रयास करता हुआ भविष्य की कल्पनाओं में निमग्न रहता है।

187. आत्मचिंतन ज्ञान प्राप्ति का द्वार है।

188. सोशल मीडिया पर केवल फैक्ट मिल सकता हैं, नालेज नहीं। नालेज के लिए हमें किताबों और व्यवहार की ओर रुख करना ही पड़ेगा।

189. तुम्हारे खुद के एहसास दूसरो के लिए एक सपने समान होते हैं।

190. किसी समस्या से बंधकर उसका हल खोजोंगे तो उसका पूर्ण समाधान नहीं मिला सकता हैं। समस्या के मनोभावों से दूरी बना कर, उसका हल खोजने पर ही पूर्ण समाधान पाया जा सकता है।

191. व्यक्ति के सिद्धांत उसके चित्तवृत्तियों को एक स्थाई रूप देते हैं।

192. मनुष्य पूर्ण रूप से प्रगति तभी कर सकता है जब वह विज्ञान और धर्म को एक पति पत्नी के रूप में स्वीकार्य कर ले और एक दूसरे की भावनाओं का ध्यान रखकर दोनों साथ साथ कदम बढ़ाए।

193. लेखक समाज को सजाता भी हैं और बचाता भी।

194. धन का जीवन से उतना ही संबंध हैं, जितना कि जीवन का सांस से, जिस प्रकार सांस की भांति धन की कमी होने पर दो कदम चलना भी मुश्किल हो जाता है और सांस के अधिक होने पर जीवन के लिए जिस प्रकार संकट उत्पन्न हो जाता हैं। उसी प्रकार धन के अधिक उपभोग से जीवन का संघर्ष से दूरी बन जाती हैं। क्योंकि बिना संघर्ष के जीवन का कोई महत्व नहीं होता हैं।

195. तुम्हारे विचार ही केवल सत्य हैं ऐसा समझना मात्र तुम्हारा भ्रम हैं।

196. रचनाएं एक लेखक की सम्पत्ति होती हैं।

197. कहानियां जीने की कला सिखाती हैं।

198. जीवन एक कारवां हैं गलतियां होने का और उनसे सीखने का।

199. इतिहास एक पाषाण रूप हैं और साहित्य उसको आकर्षक बनाने वाली छेनी - हथौड़ी। मानव मन उस कला का निर्माता और प्रकृति परिवर्तन उसके मोहक रंग।

200. आप जो कुछ जानते हैं शायद वह अंतिम सत्य नहीं हैं।

201. मानवीय सृजन को छोड़कर, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दृष्टिगत कलाकृतियों का समीकृत रुप, प्रकृति स्वरूप का आभासीय रूप है।

202. साहित्य सांकेतिक इतिहास है।

203. किसी व्यक्ति का जीवन दो प्रकार से विदित होता है। पहला स्पष्ट और दूसरा अस्पष्ट। स्पष्ट जीवन से वह स्वयं वाक़िफ होता है, और अस्पष्ट जीवन से सारी दुनियां।

204. श्रेष्ठता का की भावना मनुष्य को अंदर से खोखला बना देता है।

205. आपके जीवन की समस्याएं ही आपको एक नया मुकाम देंगी। बस आपको उनसे लड़ने की क्षमता विकसित करनी होगी।

206. दुनियां में जो कुछ भी हैं सब कुछ इतिहास हैं।

207. कभी कभी कुछ मनोगत भावनाओ को कुचलने (दबाने) पर ही जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है।

208. सिद्धांतो को कम समय में तथा व्यवहार को देरी के साथ सुधारने का प्रयास किया जा सकता है।

209. इधर घर में आग लगी है और उधर दावत की मांग की तैयारी हो रही हैं।

210. क्रांति मानवीय समाज का एक कदम आगे बढ़ने की ओर संकेत करता है।

211. कोई व्यक्ति अपनी नजर में तब तक गलत नहीं होता है, जब तक उसकी नजर साफ न हो जाए।

212. कोई कार्य अच्छा तब कहलाता है जब तक कार्य संपादन में एक अच्छा सामंजस्य न बने, चाहे वह कार्य पारिवारिक हो, सामाजिक हो, धार्मिक हो,आर्थिक हो या राजनीतिक हो।

213. परंपराएं अक्षु्ण नहीं है, परंपराएं सामाजिक समन्वय की आधारशिला हैं।

214. किसी व्यक्ति से हृदयगत दूरी बना कर आप उसकी बुराइयां कर सकते हैं लेकिन उसके हृदय के करीब रहते हुए नहीं। हृदय के करीब रहते हुए आप बस उसकी बुराइयों को समाप्त करने की चेष्टा करते रहेंगे।

215. जीवन में हमें जिस वस्तु की अधिकाधिक जरूरत होती है। वह हमे अक्सर नहीं मिलती है। जिस दिन उसकी आवश्यकता न्यून हो जाती है। वह वस्तु, हमें प्राप्ति के समीप होती है।

216. जिस दिन से आपने प्रकृति में उपस्थित सभी चीजों को समीकृत रूप में देखने का प्रयास करेंगे। उस दिन से आप चीजों को एक नये नज़रिए से समझ पाएंगे।

217. शिक्षा के द्वारा किसी जंगल को सुन्दर उपवन बनाया जा सकता है।

218. हम अतीत का अध्ययन करते हैं और भविष्य पर विचार।

219. समाज में मनुष्य एक प्रकार से क्षणिक जीवन व्यतीत करता है इसीलिए वह अपने जीवन पर पड़ने वाले दीर्घकालिक प्रभावों को वह समन्यवित नहीं कर पाता है।

220. धर्म मानवीय सभ्यता के प्रगति का पहला चरण हैं और विज्ञान दूसरा।

221. भारतीय साहित्य में जितने भी अलौकिक नायक हुए है,
वे सभी लौकिकता की प्रगति में शून्यता को प्राप्त हो रहे हैं।
 
222. शून्य अदृश्य होते हुए भी सार्वभौमिक व सार्वकालिक हैं|

223. साहित्य जनचित्तवृतियों के परिवर्तन का इतिहास हैं।

224. एक व्यक्ति अपने अतीत को खुद में समेटे रहता है और वर्तमान को समेटने का प्रयास करता हुआ भविष्य की कल्पनाओं में निमग्न रहता है।

225. आत्मचिंतन ज्ञान प्राप्ति का द्वार है।

226. कल के सपने (भविष्य) लोगों के आज कि इच्छओं (जीवन, वर्तमान) को मार देते हैं।

227. किसी विचारधारा से बधने से विचारों के संकुचित होने का खतरा रहता है।

228. सुधार जीवन का एक प्रमुख कार्य हैं। इसके बिना जीवन में नूतनता नहीं आ सकती हैं।

229. धर्म और विज्ञान समाज रूपी मनुष्य को गति देने वाले दो पैर हैं, निरन्तर प्रगति के लिए दोनों में सामंजस्य अतिआवश्यक है। नहीं तो समझ लंगड़ा या पंगु बा जाएगा।

230. विज्ञान का उद्गम स्रोत मानव मस्तिष्क हैं और धर्म का मानव हृदय।

231. प्रेम में जब तक कल्पनाओं की अधिकता होती है तब तक वह खूबसूरत होता है पर जब हकीकत से सामना होने लगता है तो उसमे नीरसता आने लगती हैं। लेकिन पूर्ण निश्छलाता आ जाने पर वह सबसे सुखद अनुभवों में से एक है।

232. कोई व्यक्ति स्वभावत: अपनी अच्छाई की पराकाष्ठा तथा अपनी बुराई की अति निम्नावस्था से हमें अवगत कराता है।

233. जिसके हाथ की लेखनी व्यवसाय बन रही हैं। वह कलम की गरिमा को खो रहा है।

234. बुद्धि वो धावक हो जो अपनी गति के समय अच्छे बुरे नफा नुकसान आदि का ध्यान नहीं रखता है बस वह सिर्फ सबसे अब्वल आना पसंद करता है लेकिन वो हृदय ही है जो मानवता प्रेंम दया और जीवन की अन्य उपयोगी को साथ लेकर आगे बढ़ता है चाहे वह प्रतिस्पर्धा में सबसे पीछे ही क्यों न रह जाए।

235. एक समय हममें बुराइयां नहीं थी इसलिए हम उत्कृष्ट थे|
आज हममें बहुत सारी बुराइयां भरी पड़ी हैं इसलिए हमें नियम कानून सिखाने वालों की संख्या बढ़ गई है।
236. साहित्य मानवीय व्यवहारों की गहरी समझ विकसित करता है।

237. व्यक्तियों की अपनी समझ, जानकारी व दृष्टियों की भिन्नता के कारण, एक ही तथ्य पर उनकी मान्यताओं में अलग - अलग धारणा प्राप्त होती है।

238. किसी कार्य की अतिशयता उसके विनाष्टता का प्रथम चरण हैं।

239. इतिहास इतिहासकार के कल्पना, विचारों तथा सपनों के अधिन नहीं है, बल्कि वह पूर्ण रूप से निश्चित है। उस निश्चित स्वरुप को खोजना इतिहासकार का प्रमुख कर्त्तव्य है।

240. अगर किसी को अच्छी तरह जनना हैं तो उसके हृदय के पास जाओ क्योंकि दिमाग कि कोई एक दशा नहीं होती हैं।

241. वर्तमान में विज्ञान अभी सिर्फ भौतिकता तक ही सीमित है, इसीलिए हम उसे अपूर्ण की संज्ञा दे सकते हैं। जब वह आध्यात्मिकता को भी अपने में समेट लेगा तब वह पूर्ण स्थिति को प्राप्त कर लेगा।

242. भौतिकता मन के दृश्य जगत का प्रतीक हैं तथा आध्यामिकता अदृश्य जगत का।

243. रामायण और महाभारत अपने आप में संपूर्ण जीवन है।
रामायण हृदय की स्थिरता और महाभारत अस्थिरता के प्रतीक हैं।

244. प्रत्येक व्यक्ति अपने मानसिकता (अज्ञानता) के गुलाम होने के कारण किसी भी तथ्य के वास्तविकता (सच) से दूर रहते हैं।

245. आप अपने बुद्धि को बिल्कुल मुक्त कर दे, उसे दसों दिशाओं में फैलने दे, वह भविष्य को बहुत ही अनोखी चीजें देकर जाएगा।

246. एक चिंतनशील मनुष्य होने के यह मतलब हैं कि हम यह भी समझे को हमारे इतर भी जहां हम न हो वहां भी जीवन पनपने और संवर्धन की क्रिया क्रियान्वित होती रहती हैं।

247. दुनियां के सारे परिवर्तन का कार्य कारण और परिणाम के

248. शरीर का रंग या बनावट चाहे कैसा भी हो, जब वह मन से पूर्ण रूप से प्रफुल्लित हो, उस वक्त उससे खूबसूरत शरीर कोई भी नहीं होता है।

249. जीवन एक खोज है जीवन का।

250.दूसरे का अनुभव एक सपने जैसा लगता है और खुद का अनुभव महाभारत के समान।

251.खून के रिश्ते तो पल भर में टूट जाते हैं पर विश्वास के रिश्ते को टूटने में जिंदगियां गुज़र जाती है।

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