समस्या और जिन्दगी ( निबंध )

         

               

                                                                                               शिवमणि"सफ़र"(विकास)

        


    यदि बात करें हम समस्या की तो सबसे पहले यह समस्या शब्द ही हमें समस्या में डाल देता है कि अब तो जिंदगी के सफर में समस्या आ खड़ी हुयी। इसे मैं कैसे देखूं ,कैसे समझू क्योंकि इसका न कोई आकार है और न ही कोई रंग है। जिससे मैं इसकी पहचान करके पहले से ही सावधान हो जाऊं। बस इसे आभास किया जा सकता है। यदि समस्या नाम की चीज किसी के जिंदगी में दाखिल हो जाती है तो वह व्यक्ति किसी समस्या में पड़ जाता है और यदि वह किसी के जिंदगी से चली जाती है तो वह व्यक्ति इस समस्या में पड़ जाता है कि अब क्या किया जाए समस्या गई तो जिंदगी में सूनापन आ गया और ये समस्या से भी बड़ी समस्या का निर्माण कर देती है। किसी की कोई समस्या है तो वह उन समस्याओं को हल करने में व्यस्त रहता है। इस प्रकार उसके जिंदगी की गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ती रहती है। समय भी धीरे-धीरे गुजरता रहता है। 


वह समस्या को समाप्त करने के लिए अन्य लोगों से सहायता प्राप्त करने का प्रयास करता है। अन्य व्यक्तियों से वह मिलता-जुलता है और लोगों से उसकी जान पहचान बढ़ती है नए विचार अनुभव मिलते हैं और किसी समस्या को हल करने के तरीके सीखता है। अब तो वह समस्या समाप्त हो गई लेकिन यह क्या पहली समस्या के समाप्त होने के कुछ समय पश्चात ही वह किसी दूसरी समस्या में पड़ गया। जिंदगी में इस समस्या का बोलबाला है एक के समाप्त होते ही दूसरी समस्या जन्म ले लेती है। वास्तव में तो ये कभी समाप्त ही नहीं होती बल्कि यह अपना रुप बदलकर आगे पुनः खड़ी मिलती है। कभी-कभी ऐसा होता है कि अभी एक समस्या समाप्त ही नहीं हुई है और दूसरी समस्या ने आ घेरा। यह रास्ते की धूल में मिले कांटे की तरह होते हैं जो दिखाई नहीं पड़ते यदि हम सब रास्ते पर संभलकर न चले तो यह समस्या रूपी कांटा हमारे शरीर रूपी पैर को मंजिल तक पहुंचने में बाधा उत्पन्न करती हैं।


जब मैं समस्या को एक मन:कार देकर समझने का प्रयास करता हूं तो मुझे इसका संबंध किसी सर्वोच्च शक्ति से जुड़ा हुआ प्रतीत होता है। इस ब्रम्हांड में सिर्फ आत्मा-परमात्मा ही अमर माने जाते हैं बाकी संसार की समस्त वस्तुएं नश्वर है। आत्मा परमात्मा दो अलग-अलग शब्द है किन्तु इनका रूप एक ही है। जैसे सोने के खान में से सोने का एक टुकड़ा निकाल लिया जाए और उस सोने के टुकड़े का हार बना दिया जाए तो अब उसका नाम हार पड़ गया। तब लोग उसे सोने का टुकड़ा कहते है। सोना नहीं कहते हैं क्योंकि उसका रूप बदल गया है। उसे एक आकार दे दिया गया है। जिसे लोग हार कहते हैं। यदि उसी हार को गलाकर उसे खान ने पुनः डाल दिया जाए तो वह उसी में विलीन हो जाता है तो उसे  लोग उसे हार नहीं कहेंगे क्योंकि वहां सोने की खान में समाहित हो गया है। बात करें परमात्मा की तो वेदों, पुराणों, उपनिषदों में बताया गया है कि परमात्मा का न कोई आदि है और न ही कोई अंत है बस उसी परमात्मा के हम अंश हैं। वास्तव में आत्मा-परमात्मा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जब सिक्के का चित भाग दिखाई देता है तो पट भाग को हम देख नहीं पाते हैं और जब सिक्के का पट भाग दिखाई पड़ता है तो चित भाग दिखाई नहीं देता है आत्मा और परमात्मा के बीच का संबंध देखने के लिए अपने  हृदय रूपी नेत्रों को खोलना होगा और यह उसी ह्रदय रूपी संसार में साधना रूपी मार्ग तय करने पर दिखाई देंगे।


         वेद पुराण गवाह रहे हैं कि इस संसार में सिर्फ आत्मा परमात्मा की अमर है। बाकी सब नश्वर है परंतु मुझे ऐसा आभास होता है कि यह समस्या नाम की जो वस्तु है। यह उसी परमशक्ति का शायद एक अंश है जो कि उन्हीं की तरह आज तक न समाप्त हुई है और ना ही शायद भविष्य में कभी समाप्त होगी। यह समस्या मुझे इस बात को स्वीकार करने के लिए विवश कर रही है कि वह भी उन्हीं की तरह अमरता को ग्रहण करने के योग्य है। इस बात का विश्वास की समस्या को अमरता प्राप्त है न मैंने किया है और न कोई भी व्यक्ति करेगा। विश्वास ही किसी व्यक्ति, वस्तु व स्थान की स्थायित्व आदि को निश्चित करता है। मुझे इस बात पर विश्वास ही नहीं है तो निश्चित तौर पर इस समस्या को खत्म किया जा सकता है।

 

अब मुझे समस्या को खत्म करने के लिए समस्या से ही शत्रुता मोल लेनी होगी। मन में इस विचार के आते ही मैं और बड़ी समस्या में पड़ जाता हूं कि एक तो यह समस्या जिसके कारण ही मैं इतना बेचैन हूं, चिंतित हूं, परेशान हूं और दूसरी कि यह उसी समस्या से शत्रुता मोल लेना जिसके कारण यह समस्या उत्पन्न हुई है। इसका अर्थ समस्या पर समस्या। समस्या से शत्रुता मोल लेकर अपने लिए स्वयं एक नई समस्या खड़ी करना इसे तो लोग मूर्खता ही कहेंगे लोग मुझे मूर्ख कहे या बुद्धिमान लेकिन मुझे इस समस्या को समाप्त करने के लिए कोई ना कोई रास्ता ढूंढना होगा। इसके लिए मुझे इस विषय पर चिंतन करना होगा कि यह समस्या कहां से उत्पन्न हुई।


         जब मैंने इस बात पर चिंतन किया कि यह मेरी जिंदगी में क्यों आई है तो मुझे एहसास हुआ कि यदि समस्या किसी की जिंदगी में नहीं आती है तो वह व्यक्ति अकेलेपन का शिकार हो जाता है और वह भी उसी समस्या का एक दूसरा रूप है। इसका तो जिंदगी में होना अनिवार्य है क्योंकि यही हमें आगे बढ़ने में सहायता प्रदान करती है। हमने किसी समस्या को हल किया। उसे हल करने में हमें कुछ ना कुछ अनुभव मिला। कोई अन्य समस्या हल किया। उसका भी अनुभव मिला। उस अनुभव को दूसरे व्यक्ति से सांझा किया। उसकी भी समस्या हल हो गई। हमारी जिंदगी में जितनी समस्याएं अधिक होती है। उतना ही अधिक आगे बढ़ने का रास्ता तैयार होता जाता है। उन समस्याओं को हल करते जाते हैं और आगे बढ़ते चले जाते हैं जो समस्याओं को हल करने से दूर भागते हैं उतने ही पीछे रह जाते हैं। इसीलिए जब तक जिंदगी है। तब तक समस्या भी है और जितना ही अधिक हम समस्याओं को हल करते हैं। उतना ही अधिक हम प्रगति करते हैं यदि तुम्हें आगे बढ़ना है तो समस्याओं को हल करो, बैठो मत, हारो मत, छोड़ कर भागो मत, उन समस्याओं से मुकाबला करो तभी तुम आगे बढ़ सकते हो अन्यथा जिंदगी के दौड़ में बहुत पीछे हो जाओगे। 


किसी ने सच ही कहा है कि---

"मुश्किलों से भाग जाना आसान होता है।

हर पहलू जिंदगी का इम्तिहान होता है। 

डरने वालों को कुछ नहीं मिलता जिंदगी में, 

लड़ने वालों के कदमों में जहां होता है।"


                        


    

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