हम अंधों से घूम रहे हैं
फिर रहे है, टकरा रहे हैं
जीवन की गलियों में
हम दुनियां नाप रहे है
दुनियां को भांप रहे हैं
हम हाफतें लोगो में
बिफरते भोगों में
मुस्कुराते ओठों में
जीवन को ढूंढ रहे हैं
हम कराह में
बची हुई राह में
दबी सी आह में
बुद्धीमानों की निगाह में
जीवन को ढूंढ रहे हैं
जीवन को ढूंढते - ढूंढते
अनंत जीवन गुजरे
कई युग बीते
इसी तरह शायद
बीत जायेंगे हजारों साल
जीवन के खोज में
जीवन खपे जा रहे हैं
नपी जा रही है सांसे
फिर भी अधूरा रहा जाता है
एक प्रश्न
आखिर जीवन हैं क्या
पूरा होने कि उम्मीद में
फिर से खपते है
असंख्य जीवन
ये सिलसिला चलता रहेगा
कब तक
जब तक कि हम अपने
अस्तित्व को न खोज ले।
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