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होंठ जब खुलते हैं

होंठ जब खुलते हैं,तो 
शब्द से गन्ध महकते हैं।
किसी के लिए खुशबूदार,
तो किसी के लिए बदबूदार।

जब तक होंठ मेरे सिले थे,
किसी से न शिकवे गिले थे।
पर जब ओठ मेरे खुले, तो
कुछ अपने और पराए से हुए।

            
                  🗒️🖋️🖋️🖋️  शिवमणि"सफ़र"(विकास)

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