मैं हूं एक अंहकारी,
मैं हूं एक भोग-विलासी,
मैंहूं एक माया-भोगी,
मैं हूं एक अपकारी।
मैं हूं एक भोग-विलासी,
मैंहूं एक माया-भोगी,
मैं हूं एक अपकारी।
मेरा स्वरूप हैं क्या,
यह मुझें नहीं पता,
मेरा कर्म हैं क्या,
यह मुझें नहीं पता।
यह मुझें नहीं पता,
मेरा कर्म हैं क्या,
यह मुझें नहीं पता।
मेरा घर हैं कहां,
यह मुझें नहीं पता,
बस इस माया-जंजाल में,
मैं हूं आ फंसा।
यह मुझें नहीं पता,
बस इस माया-जंजाल में,
मैं हूं आ फंसा।
मैं अपने घर कैसे जाऊं,
मैं खुद को कैसे देख पाऊं,
मैं इस मायाजाल को कैसे झूठलाऊं,
यह मुझे नहीं पता।
मैं खुद को कैसे देख पाऊं,
मैं इस मायाजाल को कैसे झूठलाऊं,
यह मुझे नहीं पता।
बस मुझे इतना पता हैं,
इस मायावीय संसार में,
मैं कुछ भी तो नहीं हूं,
बस एक जीव मात्र हूं।
🗒️🖋️🖋️🖋️ शिवमणि"सफ़र"(विकास)
इस मायावीय संसार में,
मैं कुछ भी तो नहीं हूं,
बस एक जीव मात्र हूं।
🗒️🖋️🖋️🖋️ शिवमणि"सफ़र"(विकास)
No comments:
Post a Comment