अरे ओ शहरी बाबू
जरा सुनो तो
तुझे बुला रहे हैं
सुबह के ये नजारे,
ठंढी हवाओं के फुहारे,
उड़ते हुए नभवासी,
लहराता हुआ पेड़,
निकलता हुआ सूरज,
कह रहे हैं तुझसे
मेरे साथ भी ज़रा दो पल घूम लो,
वन उपवन में न सही
छत पर मुझे बुला लो,
मैं वहां भी आ जाउंगी,
थोड़ा काम करेंगे,
थोड़ा आराम करेंगे,
थोड़ा मुझसे (प्रकृति सुन्दरी) बातें भी करेंगे,
थोड़ा नभवासीओं से मुलाकाते भी करेंगे।
🗒️🖋️🖋️🖋️ शिवमणि"सफ़र"(विकास)