Showing posts with label मेरा दोगलापन. Show all posts
Showing posts with label मेरा दोगलापन. Show all posts

मेरा दोगलापन

ये मैं नहीं बोल रहा हूं,
ये तो तुम बोल रहे हो,
क्योंक यहां मैं मैं न होकर,
तुम बनकर बोल रहा हूं।
तुम हो कौन?
तुम हो सारी दुनियां,
तुम हो दुनियां के लोग,
तुम हो एक महाजाल।

जब मैं मैं होता हूं, तो
सिर्फ सत्य बोलता हूं,
वह सत्य जो तुम्हें हमेशा,
बुरा और कड़वा लगता है।
बस तुम यही नहीं चाहते हो,
इसलिए मैं तुमसे बात करते वक्त,
मैं तुम बन कर बात करता हूं,
जो तुम्हें अच्छा लगता है,
जिस दिन मैं सत्य बोलूंगा,
उस दिन वहां मैं बोलूंगा।


                  🗒️🖋️🖋️🖋️  शिवमणि"सफ़र"(विकास)

New Posts

कीड़े

कीड़े धानो के खेतों में धानो को खाते हैं उनके जड़ों और तनों को चबाते ही जाते हैं फिर एक दिन मर जाते हैं उसी खेत में मिल जाते हैं उसी मिट्टी ...