कुसूर
उसका या किसी और का
न मालूम है उसको
न ही किसी और को
दोनों एक दूसरे को
घायल करते हैं
होते हैं घायल दोनों
और पता भी नहीं चलता
दोनों को
दर्द में हंसते है
खुशी में रोते है
अब को तब
और तब को अब करते है
करते करते सीखते है
गलतियां
संतुष्ट नहीं होते
तो फिर करते है
कभी कभी तो
कोई रास्ता ही नहीं दिखता
पूरी जिंदगी तक
जिनको दिख भी जाता है
वो उस पर चल नहीं पाते
चलते चलते थक भी जाते हैं
थक कर आहें भरते
कई तो सिर्फ आहे ही भरते रह जाते हैं
जो उठ जाते हैं
वो फिर चल पड़ते हैं
मंजिल के करीब आने पर
कईयों के हौसले टूट जाते हैं
कई खुद को संभाल ले जाते हैं
किसी अटूट विश्वास से
जिंदगी के संघर्षों से
सीखे हुए अनुभावों से
खुद को जो बचाए रहते है
वही कामयाब होते है
वहीं मंजिल को छूते हैं
फिर एक और मंजिल बनाते हैं
फिर उसको पाने
चल पड़ते हैं
🗒️🖋️🖋️🖋️ शिवमणि"सफ़र"(विकास)