Showing posts with label लेखनी जब भी चलती हैं. Show all posts
Showing posts with label लेखनी जब भी चलती हैं. Show all posts

लेखनी जब भी चलती हैं

स्याह रातों में
शब्द उकेरते है
जब भी मन को
तो वो रात ही
लाखों लोगों के
जीवन के अधेरें को
मिटाती चली जाती हैं।

लेखनी जब भी चलती हैं
एक नवनिर्माण करती हैं
उस रात के लेखनी में
सूरज का तेज भी 
मंद पड़ जाता है।

            🗒️🖋️🖋️🖋️शिवमणि"सफर"(विकास)

New Posts

कीड़े

कीड़े धानो के खेतों में धानो को खाते हैं उनके जड़ों और तनों को चबाते ही जाते हैं फिर एक दिन मर जाते हैं उसी खेत में मिल जाते हैं उसी मिट्टी ...