गौरी (कहानी)

      


          दोपहर के समय जब लाइट चली गई तो गर्मी के कारण पढ़ने में मन नहीं लग रहा था| थोड़ा प्यास लगी तो पानी पीने के लिए बोतल उठाया| उसमें पानी भी खत्म था| पानी भरने के लिए कमरे से बाहर आया तो देखा की किम्मी बाहर बरामदे में गौरी के साथ खेल रही थी| मैं पढ़ने शहर गया हुआ था| वहीं एक कमरा किरायें पर लेकर रह रहा था| मैं जिस मकान में रहता था, उसी मकान में एक अंकल और आंटी रहती थी| उन्हीं के साथ उनका नाती और उनके छोटे भाई की बेटी गौरी भी रहती थी| कुछ हफ्तों पहले अंकल जी की बेटी भी अपने एग्जाम के तैयारी के लिए शहर आयीं थी| उन्हीं की डेढ़ साल की नन्ही से बेटी थी किम्मी|


         किम्मी  जब से यहाँ आई थी, यहाँ के सब लोग दिन-भर उसके पीछे लगे रहते थे| मेरे मकान मालिक और  उनकी पत्नी, जिनके एक बेटा और बेटी भी थे| वों भी सुबह शाम उसे लाड़ करने में लगे रहते थे| अंकल और आंटी के बेटे व बेटी जो थोड़ा बड़े हो गए थे तो वों भी छोटी बच्ची दिन भर चुमकारते रहते थे| मुझे छोटे बच्चे हमेशा से पसंद थे, तो मुझसे तो पूछिए ही मत कि मैं कितना खुश था| जब से किम्मी यहाँ पर आई थी| तब से मैं पढ़ाई से कुछ ज्यादा ही समय निकालने लगा| पढ़ने-खाने- सोने के बाद जो भी समय बचता था| उसी के साथ खेलने में लगा रहता था| 


         जब मैं पढ़ रहा होता था, तो कमरे का दरवाजा खुला पाकर वह मेरे कमरे में चली आती थी| मेरे टेंबल के पास आकर कभी कोई पेन उठा लेती तो कभी कोई हाई-लाइटर ले कर खेलने लगती थी| मैं भी उसके आने पर किताबों से अपना ध्यान हटा कर, उसे चुमकारने लगता था और पूछता कि उसे क्या चाहिए| बिना कुछ लिए वह तो बाहर जाती ही नहीं थी| अगर कभी कुछ खाने का मन होता था तो अलमारी की तरफ इशारा करती थी| जिस पर उसके लिए हमेशा चॅाकलेट या बिस्किट  रखा रहता था| उसे पाने के बाद वह उसे अपनी मम्मी और नानी को दिखाने चली जाती थी| 


         आज किम्मी  दरवाजे के पास आयी थी, पर मैंने दरवाजा अंदर से लॉक किया हुआ था| मुझे कुछ टॉपिक्स तय  समय में तैयार करनी थी, इसीलिए मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया| दरवाजा खुला न पाकर वह बरामदे की तरफ अपने गौरी बुआ के साथ खेलने को चली गयी| इसके करीब आधें घंटे बाद लाइट कटी और मैं पानी लेने के लिए बाहर आया| किम्मी का चेहरा देखने के बाद तो पढ़ाई की बात दिल से निकल गयी| पानी पीने के बाद मैं भी उसके साथ मस्ती करने लगा| वों एक गेंद से खेल रही थी| गेंद को फेंक कर उसे पकड़ने दौड़ती| मैं भी बरामदे में गौरी के पास बैठ गया| दोपहर तक मैं कमरे में ही रहा, बाहर नहीं आया था| गौरी ने मुझे देखा  तो उसे याद आया कि कल उसे मैं बोल था किया आज मैं घर जाऊंगा| पर आज मैं अभी तक तो अपने घर नहीं गया था| 


गौरी- आज तो आप अपने घर  जाने को बोले थे| क्यों गए            नहीं।

मैं   - ( मन में - मेरे पास जवाब तो था, पर मैं उसे सही                जवाब न देने के मन से बोला -)

बस मन नहीं किया|

गौरी - अब आप कब जाओगे?

मैं  -    कल जाऊंगा|

गौरी - अगर कल भी नहीं गए तो फिर कब जाओगे?

मैं -     ( मजाक के मूंड से )

तो फिर उसके कल जाऊंगा|

गौरी - भैया मत जाओ, देखो किम्मी यहीं हैं, हम सब भी               यहीं है तो फिर आप  आप क्यों जा रहे हैं घर |

मैं -     कुछ काम हैं गौरी, इसीलिए जा रहा हूँ|

गौरी - क्या काम हैं?

मैं -    ( उसको सही कारण न बताने के मन से )

बस ऐसे ही कुछ काम हैं|

गौरी - ( मेरे घर वालो के बारे में जानने की उत्सुकता से )

अच्छा आपके  घर पर कौन कौन हैं?

मैं -    मम्मी हैं, भाई हैं, चाचा, चाची, दादा ,दादी और भी              कई लोग हैं|

गौरी - आपके कितने भाई हैं?

मैं    - दो 

गौरी - और बहन भी हैं|

मैं      - हाँ, दो बहन भी हैं|

गौरी - उनका नाम क्या हैं?

मैं     - भाई का नाम हर्ष हैं और बहन का श्रद्धा और विभा|

गौरी - और आपका 

मैं     - उत्कर्ष 

गौरी - मैं आपका एक और नाम जानती हूँ|

मैं     -( मस्ती के मूड़ से ) 

         क्या हैं? बताओ|

गौरी - ( याद करते हुए )

          ओ आपका नाम हैं----- ( पर उसे मेरा घरेलू नाम               याद नहीं आता हैं| )

गौरी - ( नयें प्रश्न के साथ )  

अच्छा, आप यहाँ अकेले क्यों रहते हैं?

मैं    - पढ़ने के लिए आया हूँ ना, इसीलिए 

गौरी - और किसी को अपने साथ क्यों नहीं ले आए? किसी को अपने साथ लाए होते तो वो आपका खाना             

          बनाता और सारे काम करता| आप बस पढ़ते| देखो मेरी मम्मी ( बड़ी माँ ) हम लोगों के लिए खाना     

          बनाती हैं और सारे काम करती हैं| हम लोग बस खाते हैं, सोते हैं और खेलते भी हैं|

मैं     - मेरे साथ कोई और रहेगा तो मुझे डिस्टर्बं होगा, अच्छे से पढ़ नहीं पाऊँगा|

गौरी - क्यों?

मैं -    मुझे अकेले पढ़ना पसंद हैं|

गौरी - तो अकेले रहिये और खाना भी बनाइये| 

मैं -    ये तो मेरे लिए सही हैं, हाँ थोड़ी ज्यादा मेहनत तो जरूर पड़ती हैं, लेकिन इससे मुझे कोई परेशानी 

         नहीं हैं, क्योंकि अकेले रहने पर अच्छे से पढ़ लेता हूँ|

गौरी - भैया आपकी मम्मी कहाँ हैं?

मैं     - घर पर हैं|

गौरी - वों घर पर क्या करती हैं?

मैं     - घर के काम करती हैं, खेत-बारी देखती हैं, घर पर भैंस हैं, उसको चारा-पानी करती हैं|

गौरी - वों यहाँ रहने क्यों नहीं आती हैं?

मैं     - अगर वों यहाँ आएंगी तो घर के काम कौन करेगा?

गौरी - ( मेरे घर जाने की बात याद आते हुए| )

         आप घर जाकर क्या करोगे?

मैं    - ( मजाक में )

         मैं घर जाकर घूमूँगा|

गौरी - पढ़ोगे नहीं?

मैं     - नहीं|

गौरी - क्यों?

मैं    - घर पर और भी काम रहता हैं|

गौरी - और क्या काम रहता हैं?

मैं     - खेत के काम देखना, बाहर के काम देखना, दोस्तों के साथ रहना व घूमना और भी बहुत सारे 

          काम होते हैं|

गौरी - आप न कोई काम न करिएगा, बस पढ़िएगा|

मैं     - क्यों?

गौरी - यहाँ तो आप दिन भर पढ़ते रहते हैं| घर जाकर क्यों नहीं पढ़ेंगे?

मैं     - ( सही उत्तर न देने के विचार से )    

          बस ऐसे ही, काम-वाम करते हैं और घूमते हैं| बस थोड़ा बहुत पढ़ते हैं|

गौरी - काम न करिएगा, मम्मी को कह दीजिएगा की हम काम नहीं करेंगे, बस पढ़ेंगे 

मैं     - नहीं कह सकता हूँ|

गौरी - क्यों नहीं कह सकते हैं? 

मैं     - घर के काम भी जरूरी हैं, वैसे जब ज्यादा और बड़े काम रहते हैं तब मुझे भी साथ में करना 

          पड़ता हैं| जो मेरे बिना हो नहीं सकता हैं|

गौरी - आपकी मम्मी बड़े काम नहीं करती हैं?

मैं     -  करती हैं|

गौरी - आपकी मम्मी आपसे प्यार करती हैं?

मैं     - हाँ, करती हैं|

गौरी - ( कुछ बुझे हुए मन से )

          मेरी मम्मी नहीं करती हैं|

मैं     - क्यों नहीं करती हैं?

गौरी - मेरी मम्मी मुझे छोड़कर चली गयी हैं|

मैं     - ( मुझे तो नहीं पता था कि उसकी माँ जो अभी कुछ दिनों पहले यहाँ आई थी, वों गौरी की दूसरी माँ 

            हैं| यही बात अभी संशय होने पर जानने की इच्छा से )

           कौन?

गौरी - वों मेरी मम्मी नहीं हैं?

मैं     - ( और सारी बात जानने की अभिलाषा से )

          सच में 

गौरी - हां 

मैं     - फिर वों कौन थीं?

          ( गौरी की दूसरी माँ अभी कुछ दिनों पहले यहाँ हफ्ते भर पहले रही थी| पर मुझे कभी पता ही नहीं             

          चल पाया कि वों उसकी दूसरी माँ हैं| यहाँ तक जब वों पहली बार यहाँ आई थी तो मैं उसकी बड़ी

           माँ को ही उसकी माँ समझता था|  )

गौरी - नहीं वों तो मेरी दूसरी माँ हैं|

मैं     - ( मैं आश्चर्य में था, यह अभी लगभग आठ साल की छोटी लड़की हैं| जिसकी अभी खाने-पीने और 

           खेलने की उम्र ही हैं, उस माँ और दूसरी माँ के बीच का फर्क मालूम हैं|)

          अच्छा 

गौरी -  आपको नहीं पता|

मैं     -  ( उस छोटी बच्ची के मन से दूसरी माँ जैसे विचारों को दूर करने के उद्देश्य से बोला - )

           तो क्या हुआ, वों भी तो तुम्हें तुम्हारी माँ की तरह की प्यार करती हैं| जब वों यहाँ आई थी तो तुम्हें 

           कितना प्यार करती थी| जब तुम टाइम से खाना नहीं कहती थी तो तुम्हें वों दुलार से ले जाती थी 

          और खिलाती थी| अगर तुम खाना नहीं खाती थी तो तुम्हारे लिए कितना परेशान रहती थी| जब 

          तुम मुझसे कार्टूंन देखने के लिए मोंबाईल ले जाती थी तो वों तुम्हें काफी देर तक मोंबाईल चलाने 

          देती थी| जबकि तुम्हारी बड़ी मम्मी तुम्हें ज्यादा फोन नहीं चलाने देती हैं| पर उन्होंने तो कभी नहीं  

         रोका, तुम कोई भी जिद करती थी तो वों उसे भी मान लेती थी| और पूरा करने की कोशिश भी 

         करती थी|

गौरी - वों मुझे प्यार करती हैं पर मैं नहीं करती हूँ|

मैं     - ऐसा क्यों?

गौरी - वों मेरी माँ नहीं हैं| मेरी माँ मुझे छोड़कर चली गयी, मुझे भूल गयी, मुझे कभी याद नहीं करती हैं|

मैं     - ( मैं संवेदनाओं के घेरे में खड़ा था| मेरे पास कोई ऐसा उत्तर नहीं था कि मैं उस छोटी सी बच्ची को      

थोड़ा भी संत्वावना दे सकूँ| कुछ पल के लिए मैं भी उसके दर्द में जीने लगा| उस समय मुझे ऐसा 

        लग रहा था कि यह आठ साल की छोटी सी बच्ची इतने बड़े दर्द को अपने दिल में लिए हुए जी रही 

        हैं, अगर मैं अपने जीवन के सारे गमों को इकट्ठा कर उसके से तुलना करूँ तो भी उसके उस 

        एहसास  के दर्द के सामने मेरा सारा दर्द कुछ भी तो नहीं हैं|)

  उसके माता-पिता का आपसी संबंध खराब कैसे हुआ| यह तो मुझे नहीं पता| यह उसके जन्म के 

तुरंत बाद हुआ या फिर उसके कुछ बड़ी हो जाने पर, जब वह थोड़ा बहुत देखने-समझने लायक हो गई हो|

सम्भवता कुछ बड़ी होने पर उसने ये दृश्य देखे हो जो उसे आज भी याद हैं| और वों यादें और अहसास आज भी उसके सीने में दर्द बनकर दफ़न हैं| यदि जन्म के कुछ ही समय बाद ही उसके माता-पिता के संबंध खराब हुए होते तो उस बच्ची को य सब शायद पता ही ना होता, जिससे वह इस दर्द से भी दूर रहती|

या बाद में किसी से अपनी माँ द्वारा छोड़ दिया जाना सुन रखा हो| स्थिति कुछ भी रही हो परंतु यहाँ एक ही बात काॅमन हैं, वों ये की उसको अपनी माँ का प्यार न मिलना| 


           बातों-बातों में मैंने उसके मन की पीड़ा को महसूस करने का प्रयास किया| अपनी माँ की याद के समय वह बहुत ही टूटे मन से बात कर रही थी, जैसे उसके दिल पर एक भारी बोझ रखा हुआ हो, जो उसके माँ के प्यार से ही खत्म हो सकता हैं| मैंने उस कुछ पल में जो कुछ भी महसूस वों तो उसके दर्द का कुछ ही हिस्सा ही था| 


          ज्यादातर समय तो वह इस दर्द को भूली ही रहती हैं| खेलने में, पढ़ने में, नयीं माँ पापा और बड़ी माँ और बड़े पापा के प्यार में| पर वह जब कभी अकेली होती हैं तो उसे मैंने कई बार तो ग़म में खोये हुए पाया| हालांकि मुझे सही कारण पता न होने के कारण मैं समझता था कि बच्ची हैं, थोड़ा बोर हो गई होगी, इसीलिए अकेले में बैठ कर अपना मन बहला रही हैं| 


         जब भी मैं उसे ऐसे गंभीर मुद्रा में देखता था, तो पूछता था कि, क्या हुआ गौरी, ऐसे मायूस क्यों बैठी हो, तो वों कुछ जवाब नहीं देती थी| तो मैं कहता कि नहीं बताओगी गौरी, तो वों बोलती कुछ नहीं बस ऐसे ही| तो मैं उसके सिर पर हल्के हाथ से मार कर बोलता पागल लड़की जाओ खेलों| फिर या तो वों खेलने चली जाती या फिर कमरे में चली जाती थी| परंतु आज जब मैंने उन स्थितियों को इस दर्द से जोड़कर देखा और अंदाज लगाया कि यही कारण हो सकता हैं उसके मायूस रहने का| अब मैं सही निर्णय न ले पाने की स्थिति में था| उससे क्या कहूँ, कैसे संत्वावना दूँ, जिसने उसका दर्द कुछ काम हो सके| पर मैं कुछ नहीं बोल सका| चुपचाप बैठा रहा, सोचता रहा, पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुच सका| इतने में उसकी बड़ी अम्मी ने उसको अपने पास किसी काम से बुलाया और वह उनके पास चली गई|

       

           उसकी बड़ी मम्मी ही थी जो उसके अपनी माँ की कमी की पूरक थी| जिनको वह अपनी माँ तरह समझती थी, क्योंकि वह भी उसको अपनी ही बेटी की तरह प्यार करती थी| उसके पालन-पोषण में कभी कोई कमी नहीं आने दी| चाहे प्यार हो, चाहे कोई और जरूरत| जब कोई इस तरह से अपना पान दिखाए तो क्या वह उससे पूरी तरह से जुड़ नहीं सकता हैं, क्या उसके प्रति पूरी तरह समर्पित नहीं हो सकता हैं| परंतु प्रकृति की यही सबसे बड़ी विडंबना रही हैं कि वह हर किसी वस्तु में या तो बृहद् या अति-सूक्ष्म भेद पैदा कर ही देती हैं| जैसे किसी वृक्ष के तने में एक दूसरा पौधा कलप जाए, वह छोटा पौधा तो उस बड़े वृक्ष से ऊर्जा लेकर बड़ा तो हो जाता हैं, परंतु वह अपने स्वभाव को नहीं छोड़ता हैं| वह अपने बीज के अनुसार ही गुण वाला होगा| या हो सकता हैं कि वह आपने आधार वृक्ष के थोड़े गुण यथा संभव ग्रहण भी कर ले| और थोड़ा बहुत अपने स्वरूप में परिवर्तन कर ले| परंतु वह पूरी तरह बदल जाए, यह शायद ही संभव हो सके|


         उसके चले जाने के बाद भी मैं लगातार उसके बारे में ही सोचता रहा, अपने कमरे में आया तो पढ़ने में मन ही नहीं लग रहा था| बस लगातार उस बच्ची के दिल में दबे दर्द को महसूस करता रहा| सोच रहा था की माता-पिता की आपसी या सामाजिक सहमति से अलग हो जाने पर वों दोनों भले ही खुश हैं, पर इसमें  उस बच्ची की क्या गलती हैं या अपराध हैं जो वोंअपने माँ बाप का प्रेम एक साथ चाहती है| किसी एक से अगर यह प्रेंम पूरा हो जाता तो उसे इस दर्द में क्यों जिन पड़ता| क्या यह दर्द उसकी खुद की पसंद हैं, क्या उसने इसे स्वयं चुना हैं| यह तो उसके माता-पिता द्वारा अपनी किसी आंतरिक समस्या को दूर करने के कारण उसे अनायास ही मिला| इसमें गलती किसकी हैं, उस बच्ची की या उसके माता-पिता की| 


           अगर गलती उसके माता-पिता की हैं, तो आज का कानून समान न्याय की मुहर कैसे लगा सकता हैं| यहाँ तो न्याय के तीन प्रति भागी थे, और न्याय सिर्फ दो को| यह कैसी विडंबना हैं| हम इसे पूर्ण न्याय कैसे मान सकते हैं| अगर किसी सामाजिक संस्था या लोगों द्वारा यह निर्णय दिया गया हैं तो व इसे पूर्ण न्याय और समान न्याय के परिभाषा से कैसे तौल सकेंगे| यह तो न्याय का पड़ला भी आसमान हो जाएगा| यदि हम सैद्धांतिक तरीके से देखे तो कानून से संम्भवता उपस्थित सुबूतों के बल-बूते सही न्याय किया होगा| लेकिन व्यावहारिक रूप से इसमें  तो कुछ गलतियाँ तो दिख ही रही हैं| 


           हम मनुष्यों के जीवन में संवेदनाओं  की प्रधानता होती हैं| इन संवेदनाओं  का हमारे जीवन में उतना ही महत्व हैं, जितना की हमारी साँसों का| कानून की नजरों में ये संवेदनाएं भले ही एक कमजोर कड़ी मानी जाती हैं, परंतु मानव जीवन इन्हीं संवेदनाओं पर ही आश्रित हैं| यहीं संवेदनाएं तो मानव जीवन के आधार हैं, जिनके बिना तो जीवन का एक पल भी संभव नहीं हैं| इन्हें आज का कानून अनदेखा कैसे कर सकता हैं| जो नित- नवीन अवस्था में मानव के हर एक दृश्य व अदृश्य पक्ष को समझ कर उसको सम्पूर्ण न्याय देने का दावा पेश करता हैं| आखिर कानून मानव जीवन को संवारने के लिए ही बना हैं, न कि जीवन को बिखेरने के लिए|

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