शहर
एक रेस के मैदान सा
जहां दौड़ते रहना ही जीवन है
भागते रहना ही
लगे रहना ही
जब आप थक जाते हैं
तो आप उस भीड़ से निकल कर
आराम करने बैठ जाते हैं
फिर से दौड़ने के लिए
या उसे छोड़ देने के लिए
शायद हमेशा के लिए
पर शहर जीवन नहीं है
उस जिया जा सकता है
आराम से, धीमी सांसों के साथ भी
उस पिया जा सकता है
मीठे शर्बत सा, घूट- घूट
मिठास का आनंद लेते हुए
या गरम चाय सा
जलते हुए, फिर संभलते हुए
No comments:
Post a Comment