आज मेरे सामने, आधी रात को
नीम के झरोखों के बीच
नीम की पत्तियां
हवाओं के जोर से
दबाने का प्रयास कर रही थी
उस पीले से अधूरे चांद को।
पर वह चांद अडिग सा, अचल सा
न दबा, वह पत्तियां के जोर से
जब वो अपने आगोश में लेने का प्रयास करती
वह थोड़ा पीछे खिसक जाता
हवाओं के जोर से वह बादलों में छिप जाता
हवाओं की रफ्तार धीमी हो गई
पत्तियों का प्रयास फीकी पड़ गई।
इस बार चमका था वह चांद
थोड़ा आगे बढ़कर
थोड़ा और उजाला भरकर
और अपनी रफ्तार को निरंतर कर
चल पड़ा वह हवाओं को भी पीछे छोड़ने
अपनी चमक से दुनियां को निखारने
स्वयं को परिपूर्ण बनाने।
🗒️🖋️🖋️🖋️ शिवमणि"सफ़र"(विकास)
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