खोखला है, यह धवल ताज,
इसमें गूंजती है, कोई आवाज,
उन मजदूरों की,असहायों की,
भूखें, नंगे, त्रस्त व बेसहारों की।
बाहर से तो यह कितना चमकीला है,
कि आंखें भी चकाचौंध हो जाती है,
अंदर से यह कितना कलिमा युक्त है,
सदियों के इतिहास को छुपा लेती है।
किसी राजा के प्रेंम की कहानी है यह,
कि अमर संस्कृति की निशानी है यह,
कई मतभेदों के साए में पल रहा है,
अनबूझी अनसुलझी कहानी है यह।
दुनियां की सात आश्चयों में है शुमार,
सारी दुनियां करती है जिसका दिदार,
जब देखा इसे मैंने पहली बार,
मेरे मन में आया बस यही विचार।
यह तो व्यर्थ है, न इसका कोई अर्थ है,
इस पर तो प्रकृति का न कोई अर्क है,
यह तो एक तानाशाह के मन का सर्पं है,
सिर्फ एक महान प्रेमी कहलाने का दर्प है।
🗒️🖋️🖋️🖋️ शिवमणि"सफ़र"(विकास)
2 comments:
Very nice kavita
Thank you
Post a Comment