आज मुझे वासना ने आ घेरा,
कर दिया मेरे मन में घना अंधेरा,
मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई,
मन मेरा त्रस्त हो गया,
वासना की पीड़ा से, जैसे
दिन अस्त हो गया।
घनी कालिमा छा गई,
कलुषता की सीमा तक होकर आ गई,
मेरे मन को बतला गई,
कि ये सब व्यर्थ है,
इसका ना कोई अर्थ है।
एक बार डूबो इसमें, तो
मन कलुषित ही होता जाता है,
अथाह औरअपार कलुषता,
पूरे मन को काला कर देती है।
एक अन्त समय भी आता है, जब
मन को झकझोर कर रख देती है,
फिर कहीं दूर, एक दीपक दिखाई देता है,
उस काले घने अंधेरे में,
फिर वही हमारा लक्ष्य बन जाता है,
प्रकाश और प्रकाश ही प्रकाश,
ज्ञान और बस ज्ञान ही ज्ञान।
🗒️🖋️🖋️🖋️ शिवमणि"सफ़र"(विकास)
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