हे! गुलाब

हे! गुलाब
तु मुरझा जा
तुम रुठ जा
बैठने न दे
इन तितलियों को
अपने प्यारी सी पंखुड़ियों पर
ये बस तुझे
नीरस ही करते रहेंगे
इन्होंने तुझे दिया ही क्या
तुम जो इनके लिए
अपनी सुन्दरता न्योछावर करती हों
तुम बार बार इनके लिए
अपने को क्यों संवारती हों
ये तो तितलियां है तितलियां
निर्दयता के रंग में रंगी है
कुत्सित इच्छाओं घिरी है
तुम्हें सजाने के लिए
इनके पास समय कहां
आज यहां तो कल वहां
किसी रसवन्ती को देखा
बदली अपनी वेशभूषा
मड़डाने लगे, भिनभिनाने लगे
बातों के गीत अलपाने लगे
मीठे मीठे ख्वाब सजाने लगे
हरियाली के गीत सुनाने लगे
पेड़ों के धुन पर लहराने लगे
हवाओं की बयार पर सरसराने लगे।


                  🗒️🖋️🖋️🖋️  शिवमणि"सफ़र"(विकास)

1 comment:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 18 जनवरी 2020 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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