हे! यात्री

ही अनंता की यात्रा पर निकले हुए यात्री,
तुम क्यों निरुद्देश्य देश इन गलियों में भटक रहे हो,
इस काल्पनिक दुनिया में तुम क्यों स्वयं को भूले जा रहे हो,
तुम स्वयं को पहचानो,
नहीं तो तुम भी खो जाओगें,
एक दिन इन्हीं नज़रों में,
तुम्हें कल भूल जाएंगे यह दुनिया वाले,
और कल तुम छप जाओगे इतिहास के पन्नों पर,
तब तुम ना कुछ सोच सकोगे,
ना तुम कुछ बोल सकोगे,
और ना ही कुछ तुम कर सकोगे,
इसीलिए तुम्हें जो भी करना है,
आज ही उसकी शुरूआत करो,
एक नए सपने का आगाज करो,
खुद पर तुम विश्वास करो,
एक दिन वह दिन भी आएगा,
जब तुम इन पत्थरों में,
हीरो की तरह चमको गए,
तुम्हारे इस दुनिया से चले जाने के बाद,
तुम्हारे सपनों को यह दुनिया ही पूरी करेगी,
तब तुम्हें इतिहास के पन्नों पर नहीं,
उन सपनों में पुनः जीवित हो जाओगे,
और जब तक तुम्हारा सपना पूरा नहीं होगा,
तब तक तुम लोगों के विचारों में जिंदा रहोगे।

                  🗒️🖋️🖋️🖋️  शिवमणि"सफ़र"(विकास)

2 comments:

Unknown said...

Bhaiya ji hum logo ke liye humesa nayi nayi poems ko add kiya kro taaki humko bhi isi kavita ko likhane ka mauka mil ske

शिवमणि"सफ़र"(विकास) said...

Thank you

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