एक शिकारी

निकल पड़ा एक वनवासी,
लेकर अपने हाथ में लाठी,
दौड़ लगाया शिकार के खातिर,
पर हाथ ना आया कोई शातिर।

थककर वह बैंठा पेड़ की छांव,
क्योंकि काम ना आया कोई दांव,
एक हवा का झोंका आया,
उसको एक सपने में सुलाया।

सपने में एक दयावान था,
जैसें वह एक भगवान था,
उसके जनों को पास बुलाया,
मेरे उनको एक संदेश सुनाया।

मेरे प्यारे नगर के वासी,
बनो तुम एक निश्चल अभिलाषी,
गाना तुम सब प्रेम के गीत,
भूल न जाना तुम यह रीत।

बनना तुम सब सदाचारी,
भूल न जाना मानवता-सारी,
यह सब है बनाते दुनिया की तकदीर,
जैसा करेगा वैसा भरेगा वह वीर।

इस दुनिया में सदा रहेंगे दीन,
भूल न जाना होकर कर करुणा विहीन,
तुम्हें बताता हूं एक राज की बात,
मैं उन दिनों में करता हूं वास।

जो होगा सिर्फ धन का अनुचारी,
उस पर आएगी विपदा बड़ी भारी,
धन की सबसे बड़ी बीमारी,
होता नहीं वह कभी सुखकारी।

इस ज्ञान का प्रचार करो,
इसका तुम स्वयं व्यवहार करो,
मन को शांति मिलेगी संस्कार में,
सारी खुशियां होगी संसार में।

जब टूटा उसका सपना प्यारा,
उठ बैठा वह बेचारा,
फेंक दिया उसने हथियार,
आंखों से निकली अश्रुधार।

छोड़ दिया उसने हिंसा सारी,
बन गया मानवता का पुजारी,
सारा जीवन किया निछावर,
उन पशुओं की सेवा में नर।

                  🗒️🖋️🖋️🖋️  शिवमणि"सफ़र"(विकास)

No comments:

New Posts

कीड़े

कीड़े धानो के खेतों में धानो को खाते हैं उनके जड़ों और तनों को चबाते ही जाते हैं फिर एक दिन मर जाते हैं उसी खेत में मिल जाते हैं उसी मिट्टी ...