अध्यापिका पर एक कविता
कैसे लिखूं मैं
और क्या लिखूं
जो छात्र कहते है,
उसके रूप को लिखूं
या दौड़-धूप को लिखूं,
उसके जवानी को लिखूं
या उसके पीछे छिपी
दर्द भरी कहानी को लिखूं।
कैसे लिखूं मैं
और क्या लिखूं
जो छात्र कहते है,
उसके रूप को लिखूं
या दौड़-धूप को लिखूं,
उसके जवानी को लिखूं
या उसके पीछे छिपी
दर्द भरी कहानी को लिखूं।
कुछ नवयुवक छात्र
उसको प्रेयसी बनाने की सोंच रखते हैं,
जबकि देखना चाहिए उन्हें
सम्मान की दृष्टि से, उसके कर्तव्यनिष्ठा से,
शायद वो छात्र भूल जाते हैं
उस गुरु की महिमा,
जो उन्हें रास्ता दिखाती है
अज्ञान के घने अंधेरे में,
हताशा में, निराशा में,
सूख चुकी आशा में
कल्पना के फूल खिलाती है।
उसको प्रेयसी बनाने की सोंच रखते हैं,
जबकि देखना चाहिए उन्हें
सम्मान की दृष्टि से, उसके कर्तव्यनिष्ठा से,
शायद वो छात्र भूल जाते हैं
उस गुरु की महिमा,
जो उन्हें रास्ता दिखाती है
अज्ञान के घने अंधेरे में,
हताशा में, निराशा में,
सूख चुकी आशा में
कल्पना के फूल खिलाती है।
कितने संघर्षों के बाद
उसने यह प्रतिष्ठा पायी है,
इस बात का अंदाजा
क्या तुमने कभी लगाई है,
सोचो जरा एक बार
घर का काम भी सम्भाला,
अपना नाम भी सम्भाला,
अपनी ममता को भी बचाया,
अपने दर्द को भी छुपाया,
दिन भर के काम से
उसको भी लगती थी थकाई,
फिर भी वह रात भर
जागकर करती थी पढ़ाई,
तब जाकर उसने
यह प्रतिष्ठा है पाई।
उसने यह प्रतिष्ठा पायी है,
इस बात का अंदाजा
क्या तुमने कभी लगाई है,
सोचो जरा एक बार
घर का काम भी सम्भाला,
अपना नाम भी सम्भाला,
अपनी ममता को भी बचाया,
अपने दर्द को भी छुपाया,
दिन भर के काम से
उसको भी लगती थी थकाई,
फिर भी वह रात भर
जागकर करती थी पढ़ाई,
तब जाकर उसने
यह प्रतिष्ठा है पाई।
🗒️🖋️🖋️🖋️ शिवमणि"सफ़र"(विकास)
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