आया मेरे ज़हन में
ठहरा मेरे मन में
कर दिया मुझे बेहाल
जो न आया कई साल
बन कर आया भूचाल
पहले तोड़ा मेरा विश्वास
फिर छिना मेरा श्वास
मैं तड़पने लगा
जलहीन मछली की तरह
मैं पल भर के लिए भूल गया
कि मेरा भी कोई अस्तीत्व है।
ठहरा मेरे मन में
कर दिया मुझे बेहाल
जो न आया कई साल
बन कर आया भूचाल
पहले तोड़ा मेरा विश्वास
फिर छिना मेरा श्वास
मैं तड़पने लगा
जलहीन मछली की तरह
मैं पल भर के लिए भूल गया
कि मेरा भी कोई अस्तीत्व है।
डरता रहा मैं
चलता रहा मैं
डरते डरते
पग धरता रहा मैं
कदम बढ़ाने से पहले
मुस्कुराने से पहले
दिल संभल जाने को कहता
आज तक मैं न समझ सका
आखिर डर क्या चीज़ है।
न रंग है न रूप है
न ही कोई स्वरुप है
पहले तोड़ता है विश्वास
फिर नचाता है अपने हाथ
चलता रहा मैं
डरते डरते
पग धरता रहा मैं
कदम बढ़ाने से पहले
मुस्कुराने से पहले
दिल संभल जाने को कहता
आज तक मैं न समझ सका
आखिर डर क्या चीज़ है।
न रंग है न रूप है
न ही कोई स्वरुप है
पहले तोड़ता है विश्वास
फिर नचाता है अपने हाथ
आज के पहले
न जाने कब आया था
पर इतनी तबाही पहले
न मचाया था।
कर दिया मुझे मजबूर
तोड़ दिया मेरा गुरुर
आंख खोलने से भी
डरता था मैं
कुछ बोलने से भी
पहले संभलता था मैं
टूट चुका था मैं
खुद से रुठ चुका था मैं।
न कोई चाह थी
न कोई राह थी
जिंदगी मेरी गुनाह थी।
न जाने कब आया था
पर इतनी तबाही पहले
न मचाया था।
कर दिया मुझे मजबूर
तोड़ दिया मेरा गुरुर
आंख खोलने से भी
डरता था मैं
कुछ बोलने से भी
पहले संभलता था मैं
टूट चुका था मैं
खुद से रुठ चुका था मैं।
न कोई चाह थी
न कोई राह थी
जिंदगी मेरी गुनाह थी।
गुनाह ही तो थी
जो मैं डरता रहा
फिसलने के डर से
संभलता रहा
जिंदगी की राह में
धीरे धीरे पग धरता रहा
क्यों नहीं समझा मैं
दुनिया की गति है तेज़
अभी यहां है तो
पल भर में न जाने कहां
दौड़ना तो पड़ेगा मुझे
नहीं तो फिर छूट जाऊंगा
खो जाऊंगा बैंलो की चाल में।
यही सोच कर विश्वास जगा
डर को छोड़ फिर मैं भागा
जो मैं डरता रहा
फिसलने के डर से
संभलता रहा
जिंदगी की राह में
धीरे धीरे पग धरता रहा
क्यों नहीं समझा मैं
दुनिया की गति है तेज़
अभी यहां है तो
पल भर में न जाने कहां
दौड़ना तो पड़ेगा मुझे
नहीं तो फिर छूट जाऊंगा
खो जाऊंगा बैंलो की चाल में।
यही सोच कर विश्वास जगा
डर को छोड़ फिर मैं भागा
फिर जो हुआ वो अद्भुत था
डर भी कहीं गुमशुद था
बेहोशी के हालात थे उसके
यम के गण पास थे उसके
खिलखिलाकर मैं हंस पड़ा
मुझमें नया विश्वास जगा
डर तो कुछ भी तो नहीं था
बस एक कोरी कल्पना थी
जिसकी न कोई निंशा थी।
डर भी कहीं गुमशुद था
बेहोशी के हालात थे उसके
यम के गण पास थे उसके
खिलखिलाकर मैं हंस पड़ा
मुझमें नया विश्वास जगा
डर तो कुछ भी तो नहीं था
बस एक कोरी कल्पना थी
जिसकी न कोई निंशा थी।
🗒️🖋️🖋️🖋️ शिवमणि"सफ़र"(विकास)
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